कुरान अल-बकरा:25 से
क़ुरआन📗अल-बक़रा :25
जो लोग ईमान लाए
और उन्होंने अच्छे कर्म किए
(ऐ पैग़म्बर) उन्हें खुशखबरी दे दो
कि उनके लिए ऐसे बाग़ है
जिनके नीचे नहरें बह रहीं होगी,
जब भी उन बागों में से कोई फल
उन्हें रोजी के रूप में मिलेगा,
तो कहेंगे, "यह तो वही हैं
जो पहले हमें मिला था,"
और उन्हें मिलता-जुलता ही
(फल) मिलेगा;
उनके लिए वहाँ पाक-साफ़
जोड़े होंगे,
और वे वहाँ हमेशा रहेंगे।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :26
अल्लाह इससे नहीं शर्माता
कि वह मच्छर की मिसाल पेश करे
या इससे भी किसी छोटी चीज़ की,
फिर जो ईमान वाले हैं
वह जानते हैं
कि वह सच है
उनके पालनहार की तरफ से,
और जो इन्कार करने वाले हैं,
वे कहते हैं
कि इस मिसाल को बयान करके
अल्लाह ने क्या इरादा किया है,
अल्लाह इसके ज़रिए
बहुतों को भटका देता है
और बहुतों को वह इसके ज़रिए
सीधी राह दिखा देता है,
मगर इससे वह सिर्फ नाफरमानों
(अवज्ञाकारियों) ही को भटकने देता है।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :27
जो अल्लाह सेे अपने किए हुए
वादे को तोड़ देते हैं
और उस चीज़ को तोड़ते हैं
जिसको अल्लाह ने जोड़ने का
हुक्म दिया है
और ज़मीन में फसाद पैदा करते हैं,
यही लोग हैं जो घाटा उठाने वाले।
*क़ुरआन📗अल-बक़रा :28*
तुम कैसे अल्लाह का*
इन्कार करते हो?*
जबकि तुम बेजान थे*
तो उसी ने तुमको ज़िन्दगी दीं,*
फिर वही तुमको मौत देगा,*
फिर ज़िन्दा करेगा,*
फिर तुम उसी की तरफ*
लौटाए जाओगे।*
*क़ुरआन📗अल-बक़रा :29*
वही तो है जिसने तुम्हारे लिए*
ज़मीन की सारी चीज़े पैदा की,*
फिर आसमान की तरफ रुख़ किया*
और ठीक तौर पर*
सात आसमान बनाए*
और हर चीज़ से वही वाकिफ है।*
*क़ुरआन📗अल-बक़रा :30*
और जब तुम्हारे पालनहार ने*
फ़रिश्तों से कहा*
कि मैं (इन्सान को) ज़मीन में*
एक ख़लीफा (=सत्ताधारी/उत्तराधिकारी)*
बनाने वाला हूँ।*
फ़रिश्ते (ताज्जुब से) कहने लगे*
क्या तू ज़मीन में*
ऐसे शख्स को बसाएगा*
जो ज़मीन में फ़साद (बिगाड़) करें*
और खून बहायें।*
(अगर ख़लीफा बनाना है*
तो हमारा ज्यादा हक़ है*
क्योंकि) हम तेरी तारीफ व*
गुणगान करते हैं*
और तेरी पाकीज़गी (पवित्रता)*
बयान करते हैं*
अल्लाह ने कहा,*
मैं वह जानता हूँ*
जो तुम नहीं जानते।*
क़ुरआन📗अल-बक़रा :31
अल्लाह ने आदम को
सारे नाम सिखाए,
फिर उनको फ़रिश्तों के सामने
पेश किया
और (फ़रिश्तों से) कहा,
"अगर तुम सच्चे हो
तो मुझे इनके नाम बताओ।"
क़ुरआन📗अल-बक़रा :32
फ़रिश्तों ने कहा
कि तू पाक है।
हम तो जो कुछ तूने सिखाया है
उसके सिवा कुछ नहीं जानते।
तू बड़ा जानने वाला,
हिक्मत वाला (तत्त्वदर्शी) है।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :33
अल्लाह ने हुक्म दिया,
"ऐ आदम!
फरिश्तों को उन लोगों के
नाम बताओ।"
फिर जब आदम ने फरिश्तों को
उनके नाम बता दिए
तो अल्लाह ने कहा
क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था
कि आसमानों और ज़मीन के
राज़ को मैं ही जानता हूँ।
और मैं जानता हूं
जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो
और जो कुछ तुम छिपाते हो।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :34
और जब हमने फ़रिश्तों से कहा
कि आदम को सजदा करो,
तो उन्होंने सज्दा किया,
मगर शैतान ने सजदा न किया।
उसने नाफरमानी (अवज्ञा) की
और घमण्ड किया
और नाफरमानों (अवज्ञाकारियों)
में से हो गया।
क़ुरआन📗अल-बक़रा 35
और हमने कहा, ऐ आदम!
तुम और तुम्हारी पत्नी
जन्नत में रहो
और जहाँ से तुम दोनों का जी चाहे
वहाँ से जी भर बेरोक-टोक खाओ,
लेकिन इस झाड़ के पास
न जाना,
वरना तुम ज़ालिमों में से
हो जाओगे।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :36
आखिरकार शैतान ने
उन दिनों को
(उस झाड़ के बारे में मनघड़ंत
बातों से) फुसला दिया,
और उनको (उस ऐश व आराम
की ज़िन्दगी से) निकलवाकर छोड़ा,
जिसमें वे थे।
हमने कहा तुम सब
(ज़मीन पर) उतर जाओ,
तुम्हारे कुछ,
कुछ के दुश्मन है
और तुम्हारे लिए
ज़मीन में ठिकाना है
और एक वक़्त तक सामाने
(ज़िन्दगी) है।"
क़ुरआन📗अल-बक़रा :37
फिर आदम ने अपने रब से
कुछ शब्द सीख लिए,
तो अल्लाह ने उसकी तौबा
क़बूल कर ली,
बेशक वह तौबा क़बूल करने वाला,
रहम करने वाला है।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :38
(और जब आदम को) हमने कहा (था)
कि यहाँ से उतर जाओ
जब कभी तुम्हारे पास मेरी
तरफ़ से हिदायत (मार्गदर्शन) आए
तो (उसके मुताबिक़ चलना
क्योंकि) जो चला मेरी हिदायत पर
उन पर (क़यामत) में
न कोई ख़ौफ होगा
और न वे दुखी होंगे।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :39
और जिन लोगों ने इनकार किया
और हमारी आयतों को झुठलाया,
वहीं आग में पड़नेवाले हैं,
वे उसमें हमेशा पड़े रहेंगे।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :40
ऐ बनी इसराईल (पैगम्बर
याक़ूब की वंशज)
मेरे उन एहसानों को याद करो
जो मैंने तुमपर किया था।
और मेरे साथ किए गए
वादों को पूरा करो,
मैं तुमसे किए गए
वादों को पूरा करूँगा
और (हां) मेरा ही डर रखो।
[۱۷/۷ ۱۰:۴۷ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :41
और ईमान लाओ
उस क़िताब (क़ुरआन) पर
जो मैंने उतारी है,
जो उस किताब (तौरेत) की (भी)
तस्दीक (पुष्टि) करती है,
जो तुम्हारे पास है,
और सबसे पहले तुम ही उसके
इनकार करनेवाले न बनो।
और मेरी आयतों को
थोड़ी क़ीमत (दुनिया के फायदे)
हासिल करने के लिए न लो,
और मुझ ही से डरते रहो।
[۱۷/۷ ۱۰:۵۰ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :42
और सच्चाई को
झूठ के साथ न मिलाओ
और सच बात को न छिपाओ
जबकि तुम जानते हो।
[۱۸/۷ ۱۰:۵۶ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :43
और नमाज़ क़ायम करो
और ज़कात (निर्धारित दान) दो
और (मेरे सामने) झुको
झुकनेवालों के साथ।
[۱۸/۷ ۱۰:۵۸ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :44
क्या तुम दुसरो को तो
नेकी की नसीहत देते हो
और अपने आपको
भूल जाते हो?
हालाँकि तुम किताब भी
पढ़ते हो
फिर क्या तुम अक्ल से
काम नहीं लेते?
[۱۸/۷ ۱۱:۰۰ PM] +91 80700 05559: *क़ुरआन📗अल-बक़रा :45*
*तुम सब्र और नमाज़ से*
*मदद लो,*
*और वह बहुत भारी है,*
*मगर उन लोगों पर नहीं,*
*जो डर रखने वाले हैं।*
[۱۸/۷ ۱۱:۰۲ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :46
जो समझते हैं
कि उनको अपने पालनहार से
मिलना है
और वह उसी की तरफ
लौटने वाले हैं।
[۱۹/۷ ۱۱:۱۱ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :47
ऐ बनी इसराइल!
मेरे उस एहसान को याद करो
जो मैंने तुम्हारे ऊपर किया
और इस बात को
कि मैंने तुमको जहान वालों पर
बड़ाई (प्रधानता) दी।
[۱۹/۷ ۱۱:۱۵ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :48
और डरो उस दिन से
जब कोई शख्स किसी दूसरे
शख्स के काम न आएगा।
न उसकी तरफ से कोई
सिफारिश क़ुबूल की जाएगी।
और न उससे बदले में कुछ
मुआवज़ा लिया जाएगा
और न उन (गुनहगारों) की
कोई मदद की जाएगी।
[۱۹/۷ ۱۱:۲۳ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :49
और (उस वक़्त क़ो याद करो)
जब हमने तुमको
फिरऔन के लोगों से
छुटकारा दिलाया,
वे तुम्हें बड़े-बड़े दुख व सज़ा
देते थे
तुम्हारे बेटों का कत्ल कर देते थे
और तुम्हारी बेटियों को ज़िन्दा रखते थे
और उसमें तुम्हारे रब की
तरफ से (तुम्हारे सब्र की)
सख्त आज़माइश थी।
[۲۰/۷ ۱۱:۰۹ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :50
और जब हमने तुम्हारे लिए
समन्दर को चीर दिया
और तुम्हें समन्दर पार कराया
और फिरऔन के लोगों को
तुम्हारी आँखों के सामने डूबो दिया।
[۲۰/۷ ۱۱:۱۰ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :51
और जब हमने मूसा को
(बुलाया) चालीस रात के वादे पर,
फिर तुमने उसकी गैरमौजूदगी में
एक बछड़ा (को परसतिश के लिए
खुदा) बना लिया
और ज़ालिम बन गए।
[۲۰/۷ ۱۱:۱۱ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :52
फिर इसके बाद भी
हमने तुम्हें माफ़ किया,
ताकि तुम एहसान मानो।
[۲۱/۷ ۱۱:۰۵ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :53
और याद करो
जब मूसा को हमने किताब
और कसौटी (यानी सच और
झूठ में फ़र्क पकड़ने वाली चीज़)
अता की,
ताकि तुम हिदायत (मार्ग)
पा सको।
[۲۱/۷ ۱۱:۰۷ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :54
और जब मूसा ने
अपनी क़ौम से कहा,
"ऐ मेरी कौम के लोगो!
बछड़े को (खुदा) बनाकर
तुमने अपने ऊपर
सख़्त ज़ुल्म किया है,
तो तुम अपने पैदा करनेवाले की
तरफ पलटो,
और अपने गुनहगारों को
अपने हाथों से कत्ल करो।
यही तुम्हारे पैदा करनेवाले के यहां
तुम्हारे लिए अच्छा है,
फिर उसने तुम्हारी तौबा
क़बूल कर ली।
बेशक वह बड़ा तौबा
क़बूल करनेवाला,
रहम करने वाला है।"
[۲۱/۷ ۱۱:۰۹ PM] +91 80700 05559: क़ुरआन📗अल-बक़रा :55
और याद करो
जब तुमने कहा था,
"ऐ मूसा, हम तुमपर ईमान
नहीं लाएँगे
जब तक अल्लाह को
खुद आमने-सामने न देख लें।"
फिर बिजली की एक कड़क ने
तुम्हें आ दबोचा,
और तुम देखते ही रहे गए।
क़ुरान📗अल-बक़रा :56
फिर तुम्हें तुम्हारे मरने के बाद
हमने ज़िन्दा कर दिया
ताकि तुम शुक्र करो।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :57
और हमने तुम्हारे ऊपर
बादलों का साया किया
और तुम पर मन्न (बटेर
जैसा परिंदा)
और सलवा (उपकार के रूप में
एक विशेष खाद्य) उतारा।
खाओ सुथरी चीज़ों में से
जो हमने तुमको दी हैं
और उन्होंने हमारा
कुछ नहीं बिगाड़ा,
बल्कि वे अपना ही
नुकसान करते रहे।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :58
और जब हमने कहा तुम
दाखिल हो जाओ उस बस्ती में
फिर उसमें जहाँ से चाहो
जी भर खाओ,
और बस्ती के दरवाज़े से
दाखिल हो सजदा करते हुए
और कहो, "बख़्श दे।"
हम तुम्हारी खताओं को
बख़्श देंगे
और जल्द ज़्यादा देंगे
नेकी करने वाले को।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :59
फिर जो बात उनसे
कहीं गई थी
ज़ालिमों ने उसे दूसरी बात से
बदल दिया।
फिर जो नाफरमानी (अवज्ञा)
वे कर रहे थे
उसके कारण,
ज़ालिमों पर हमने,
आसमान से सज़ा उतारी।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :60
और याद करो जब मूसा ने
अपनी क़ौम के लिए पानी मांगा
तो हमने कहा, (ऐ मूसा)
"चट्टान पर अपनी लाठी मारो,
"(लाठी मारते ही) उसमें से
बारह चश्में (स्रोत) फूट निकले
और हर क़बीले ने
अपना-अपना घाट जान लिया
"तुम खाओ और पियो
अल्लाह का दिया
और ज़मीन में फ़साद करते
न फिरो।"
क़ुरआन📗अल-बक़रा :61
और याद करो,
जब तुमने मूसा से कहा
कि ऐ मूसा हमसे एक ही
तरह के खाने पर
हरगिज़ सब्र न हो सकेगा।
तो अपने पालनहार को
हमारे लिए पुकारो (दुआ करो)
कि जो चीज़े ज़मीन से उगती है
जैसे साग पात तरकारी
और ककड़ी और गेहूँ
और मसूर और प्याज़
(मन व सलवा) की जगह पैदा करें
(मूसा ने) कहा क्या तुम ऐसी
चीज़ को जो हर तरह से बेहतर है
मामूली चीज़ से बदलना चाहते हो
तो किसी शहर में जाओ
फिर तुम्हारे लिए जो तुमने
माँगा है सब मौजूद है
और उन पर ज़िल्लत
और मोहताजी की मार पड़ी
और वे लौटे अल्लाह का
गज़ब (प्रकोप) ले कर,
ये सब इस वजह से हुआ
कि वे लोग अल्लाह की आयतों से
इन्कार करते थे
और पैग़म्बरों को नाहक
कत्ल करते थे,
और इस वजह से (भी)
कि उन्होंने नाफ़रमानी (अवज्ञा) की
और वे हद से आगे बढ़ते थे।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :62
बेशक, जो लोग मुसलमान हुए
और जो लोग यहूदी हुए
और नसारा (ईसाई)
और साबी,
उनमें से जो शख्स
ईमान लाया अल्लाह (इश्वर) पर
और आखिरत (परलोक) के
दिन पर
और नेक कर्म करता रहा
तो उनके लिए उनके पालनहार
के पास बदला है।
और उनके लिए न कोई डर होगा
और न वे दुःखी होंगे।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :63
जब हमने तुमसे
तुम्हारा वादा लिया
और हमने तुम्हारे सर पर
तूर से (पहाड़ को) लाकर लटकाया
और कह दिया
कि तौरेत (किताब) जो हमने
तुमको दी है
उसको मज़बूती से पकड़े रहो
और जो कुछ उसमें है
उसको याद रखो
ताकि तुम बच सको।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :64
फिर इसके बाद भी
तुम फिर गए,
तो अगर अल्लाह का फ़ज़ल (कृपा)
और उसकी रहमत (दयालुता)
तुम पर न होती,
तो तुम घाटे में पड़ गए होते।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :65
और उन लोगों की हालत
तुम जानते हो
जिन्होंने सब्त (शनिवार) के मामले में
अल्लाह के हुक्म को तोड़ा,
तो हमने उनको कह दिया
तुम लोग ज़लील बन्दर बन जाओ।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :66
फिर हमने इस वाक़ये से
उन लोगों के लिए
जिन के सामने हुआ था
और आने वाली पीढियों के लिए
सबक बनाया
और डर रखने वालों के लिए
नसीहत।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :67
और याद करो जब मूसा ने
अपनी क़ौम से कहा,
"बेशक अल्लाह तुम्हें
हुक्म देता है
कि एक गाय जब्ह करो।"
वे कहने लगे,
"क्या तुम हमसे मज़ाक करते हो?"
मूसा ने कहा, "मैं इससे अल्लाह की
पनाह माँगता हूँ कि जाहिल बनूँ।"
क़ुरआन📗अल-बक़रा :68
क़ौम के लोगो ने कहा,
अपने पालनहार से निवेदन करो
कि वह हमे बतलाए
कि वह गाय कैसी है।
मूसा ने कहा, अल्लाह कहता है
कि वह गाय न बूढ़ी है
न ही बच्चा, इनके बीच की है।
तो जो तुम्हें हुक्म दिया जा रहा है,
कर
क़ुरआन📗अल-बक़रा :69
फिर उन्होंने कहा,
अपने पालनहार से निवेदन करो,
वह बताये उसका रंग कैसा है?
मूसा ने कहा, अल्लाह कहता है
कि वह गहरे पीले रंग की है,
देखने वालों को अच्छी लगती हैं
क़ुरआन📗अल-बक़रा :70
फिर वे कहने लगे,
अपने पालनहार से पूछो
कि वह हमे बतला दे
कि वह कैसी है?
क्योंकि गाय में हमको
शक हो गया है।
और अल्लाह ने चाहा
तो हम ज़रूर राह पा लेंगे।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :71
मूसा ने कहा अल्लाह कहता है
कि वह गाय न काम करने वाली हो,
न ज़मीन में हल जोतने वाली
और न खेतों को पानी पिलाने वाली।
ठीक-ठाक है, उसमें किसी
दूसरे रंग की मिलावट नहीं है।"
वे बोले अब तुम साफ बात लाए।
फिर उन्होंने उसको ज़बह किया।
हालाँकि उनसे उम्मीद न थी
कि वे ऐसा करेंगे।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :72
और जब तुमने एक आदमी को
कत्ल किया,
फिर तुममें फूट पड़ गई और
एक-दूसरे को क़ातिल बताने लगे,
जबकि अल्लाह ज़ाहिर
कर देना चाहता था
जो कुछ तुम छिपाना चाहते थे
क़ुरआन📗अल-बक़रा :73
तो हमने कहा
कि उस गाय का कोई टुकड़ा लेकर
उस (आदमी की लाश) पर मारो
इस तरह अल्लाह मुर्दे को
ज़िन्दा करता है
और तुम को अपनी कुदरत
की निशानियाँ दिखा देता है,
ताकि तुम समझो।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :74
फिर इसके बाद भी
तुम्हारे दिल सख़्त हो गए,
जैसे पत्थरों की तरह
बल्कि उनसे भी ज्यादा सख़्त,
क्योंकि कुछ पत्थर
ऐसे भी होते है
जिनसे नहरें फूट निकलती है,
और कुछ ऐसे भी होते है
कि उनमें दरार पड़ जाती है
और उनमें से पानी निकल पड़ता है,
और उनमें से कुछ ऐसे भी होते है
जो अल्लाह के डर से गिर जाते है।
और जो कुछ तुम कर रहे हो,
अल्लाह उससे बेखबर नहीं है
क़ुरआन📗अल-बक़रा :75
(मुसलमानो) क्या तुम
यह उम्मीद रखते हो
कि ये यहूदी तुम्हारे कहने से
ईमान ले आयेंगे।
जबकि उनमें से कुछ लोग
अल्लाह का कलाम (वाणी)
सुनते रहे हैं,
फिर उसे खूब समझ लेने के बाद
जान-बूझकर उसमें
बदलाव करते रहे?
क़ुरआन📗अल-बक़रा :76
और जब वे ईमान वालों से
मिलते हैं
तो कहते हैं
कि हम ईमान लाए हुए हैं।
और जब वे आपस में
एक दूसरे से अकेले में मिलते हैं
तो कहते हैं क्या तुम उनको
वे बातें बताते हो
जो अल्लाह ने तुम पर (तौरेत
किताब में) ज़ाहिर कर दिया हैं
कि वे तुम्हारे खिलाफ
तम्हारे पालनहार के पास
तुमसे हुज्जत लाएँ
(तर्क-विर्तक करें)?
तो क्या तुम समझते नहीं।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :77
क्या वे (इतना भी) जानते नहीं
कि अल्लाह वह सब कुछ जानता है,
जो कुछ वे छिपाते
और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं?
क़ुरआन📗अल-बक़रा :78
और उनमें अनपढ़ भी हैं
जिन्हें ख़ुदा की किताब का
इल्म (ज्ञान) नहीं है,
बस अपने मतलब की बातों को
धर्म जानते हैं,
उनके पास ख्याली बातों के
सिवा और कुछ नहीं हैं।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :79
तो विनाश और तबाही है
उन लोगों के लिए
जो अपने हाथों से
किताब लिखते हैं
फिर कहते हैं,
"यह अल्लाह की तरफ़ से है",
ताकि उसके ज़रिए थोड़ी सी
क़ीमत हासिल कर लें।
तो तबाही है
उनके हाथों ने लिखा
और तबाही है उनके लिए
उसके कारण जो वे कमा रहे हैं।
क़ुरआन📗अल-बक़रा :80
वे कहते है,
"जहन्नम की आग हमें
नहीं छू सकती,
हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों की
बात और है।"
(ऐ रसूल इनसे) कहो,
"क्या तुमने अल्लाह से
कोई वादा ले रखा है?
कि अल्लाह हरगिज़ अपने
वादे के खिलाफ नहीं जाएगा?
या तुम अल्लाह के ज़िम्मे डालकर
ऐसी बात कहते हो
जिसका तुम्हें इल्म (ज्ञान) नहीं?
Comments
Post a Comment